जगदलपुर :पेसा कानून नियम 2022 को लेकर संभाग स्तरीय परिचर्चा का आयोजन

जगदलपुर :- छत्तीसगढ़ सरकार पेसा कानून के 25 साल के बाद नियम लायी है, इसी कानून को सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग द्वारा परिचर्चा सह संगोष्ठी का कार्यक्रम आयोजन किया गया । जिसका मुख्य उद्देश्य नियम 2022 को समझना एवम कानून के प्रावधानों को पूरे संभाग तक पहुंचाने के बारे के विभिन्न समाज से आए युवा और सामाजिक कार्यताओ के बीच समझ बना सके। संगोष्ठी में पेसा कानून के लिए किए गए संगर्षो के साथ साथ कानून के आत्मा के बारे में वक्ताओं के बारे में बोला गया।
सभा में गूंजा राज्य और केंद्र में हमारी सरकार और हमारे गांव में हम ही सरकार।

पेसा कानून से ही होगा सत्ता का विकेंद्रीकरण : कांगे

बस्तर संभाग से आते मुख्य वक्ता अश्वनी कांगे जी ने कहा सविधान ने सत्ता का विकेंद्रीकरण करते हुए ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार है कि ग्राम सभाएं अपनी समस्त योजनाओं के संचालन और संपदाओं के प्रबंधन और मालिकाना अधिकार प्राप्त है साथ ही समस्त प्रकार की योजनाओं के सुचारू रूप से क्रियान्वयन के लिए ग्राम सभा ही मुख्य अंकेषण कर्ता है। साथ ही समस्त वन संपदाओं के स्वामित्व के लिए ग्राम सभा ही सक्षम है।

आज हम पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए बने पेशा कानून के नियम बनाने के लिए बात कर रहे हैं तो यह भी जानना लेना जरूरी है कि
23 साल हो गये पेसा कानून बने, पर हमे लगता है कि जंहा मध्य भारत के 10 पांचवी अनुसूची  राज्यों में केवल 6 राज्यों में पेसा के रूल्स बने हैं, उन सभी नियम को देखने में हमें लगता है, कहीं न कहीं वे सारे नियम एक टेबल में बैठ कर बनाया गया नियम है । ऐसा हमने महसूस किया है ,  मुझे लगता है हमें एक बार समीक्षा करना चाहिए खास तौर से कि भारतीय संविधान की अनुच्छेद 243 (M) यह कहता है कि “कतिपय क्षेत्रों में इस भाग का लागू नहीं होना”.  इसका मतलब यह है कि सविधान के भाग 9 में पंचायत राज को रखा गया है और उसी भाग का 243 (M) कहता है कि ये अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं होगा। 

इसका मतलब यह है कि जब वर्ष 1992 में 73 वां सविधान संसोधन  जोड़ा जा रहा था तब उस समय यह देखा गया कि, अनुसूचित क्षेत्र के लिए पंचायती राज व्यवस्था ठीक नहीं होगा , लेकिन यदि संसद चाहे तो,  उसको “अपवादों और उपांतरणों” के साथ में 5 वी  अनुसूची क्षेत्र में विस्तारित कर सकता है और इसके तहत ही 1996 में अपवादों और उपांतरणों के साथ “पेसा” कानून लाया गया .

अब देखें तो ये दो शब्द है “अपवादो और उपांतरणों” के साथ विस्तारित करना,  तो हमें देखना पड़ेगा कि 1996 के पहले उस क्षेत्र में जो भी प्रवृत विधि (एड्जिस्तिटग  रूल ) रहे होंगे, शेड्यूल एरिया में उसको 1 साल के भीतर  में उस समय शिथिलता बरतते हुए , उनमें पारंपरिक व्यवस्थाओं के अनुरूप जो कि रूल्स में दिया गया है, वो बदलाव/परिवर्तन कर लिए जाने चाहिए थे या उसके अनुरूप बना लिये जाना चाहिए थे. 

 

हम देखते हैं उस समय मध्य प्रदेश के समय में केवल 1997-98 में 5-6 ऐसे कानून है जिसमें पेसा के अनुरूप थोड़े-थोड़े बदलाव लाए गए, जैसे अभी चर्चा में निकल कर आया कि भू राजस्व की धारा 170 ख  2 (क) जोड़े गए , आबकारी अधिनियम में  जोड़े गये , पंचायत राज कानून में संशोधन किया गया, ऐसे तीन-चार और कानून हैं जिसमें बदलाव लाए गए.  उस समय पेसा के लिए अलग से नियम नहीं बनें थे इसलिए सारे डिपार्टमेंट जैसे कि चर्चा में निकल कर आया  कि, माइनिंग में यह-यह प्रावधान हो सकता हैं मंडी बोर्ड में ऐसा  प्रावधान हो सकता हैं वो सारे प्रावधन – सामन्य क्षेत्र के लिए हैं।

समाज पेसा नियम की समीक्षा कर आगामी रणनीति बनाएगा : प्रकाश ठाकुर 
इस कार्यक्रम के माध्यम से समस्त समाज के भीतर पेसा कानून के नियम में जन जागृति लाने की कोशिश की जा रही है, इसके बाद बस्तर संभाग के समस्त जिलों में पेसा कानून के नियम को गांव गांव तक प्रचार करेंगे और प्रत्येक ग्राम सभाओं को शसक्त करेंगे। साथ ही प्रत्येक ग्राम सभाओं से सुझाव भी लेंगे की नियमों में क्या फेरबदल को आवश्यकता है, इसके पश्चात इसके लिए रणनीति बनाएंगे।

पेशा के नियम 2022 में बहुत सी गड़बड़िया: अनुभव शोरी
सामाजिक कार्यकर्ता अनुभव शोरी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि  पेसा नियम 2022, में प्रमुख प्रावधानों को खत्म कर सरकार छत्तीसगढ़ के 60% अनुसूचित क्षेत्र वालो के साथ धोखा किया हैं, ग्राम सभाओं के साथ विश्वास घात है नियम में कटौतियां कर सरकार एक बार फिर ग्राम सभाओं और उनके संसाधनों को कॉरपोरेट घरानों को सौंपने के फिराक में है।
अनुभव शोरी में कहा कि जो नियम के सुझाव आदिवासी समाज ने दिए थे वो सभी सुझाव को सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। जैसे कि ग्राम सभा को सहमति भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अनिवार्य है इसलिए नियम में परामर्श लिखना गैर कानूनी है साथ ही ग्राम सभा के विरुद्ध अपील का प्रावधान भी गैर कानूनी है, ग्राम सभा का निर्णय इस विषय पर अंतिम निर्णय होना अनिवार्य है।साथ ही कलेक्टर को ही भू अर्जन संबंधित अपलीय अधिकारी बनाना भी असवेधानिक है। इसी प्रकार वन विभाग के कार्यक्रमों के लागू करने के पूर्व ग्राम सभा का परामर्श लिखा है वो वन अधिकार कानून 2006 के धारा 3(1) झ में विरोध में है। इस संगोष्ठी में प्रकाश ठाकुर , अकबर कोर्राम ,विनोद नागवंशी , मनोज साक्षी, कमलेश ध्रुव , तिमोती लकड़ा ,  सुरेश कर्मा , गंगा नाग , बंगा सोढ़ी , अशोक तालन्दी,   सुरेश कर्मा , नरेंद्र बुरखा ,  सत्यनारायण कर्मा ,महादेव नेताम ,  सोमारू कौशिक , शारदा कश्यप , रुकमणि कर्मा , पेसा एक्ट मास्टर अश्वनी कांगे , तुलसी ठाकुर , योगेश नरेटी ,  धीरज राणा , अनुभव सोरी ,  संतु मौर्य ,  पूरन सिंह कश्यप ,उमेदी राम गर्गराते  , सतीश मड़ावी, बलदेव मौर्य , प्रेम कुंजाम ,जीवराखन लाल मरई, रामा सोढ़ी , महेश सुदाम,  संतोष उसेंडी , महेश स्वणकार ,  हेमंत बस्तरिया , खरे कश्यप , लखेस्वर कष्यप एवं सभी समाज के समाज प्रमुख  आदि समाज प्रमुख उपस्थित थे ।