हासपेन हीरासिंह देव कांगे उर्फ कंगला मांझी सरकार  की आज शहादत दिवस 

लंकाकोट:  कंगला मांझी का असली नाम हीरासिंह कांगे देवमांझी था। छत्तीसगढ़ और आदिवासी समाज की विपन्नता और अत्यंत कंगाली भरा जीवन देखकर हीरासिंह कांगे देवमांझी ने खुद को कंगला घोषित कर दिया। इसलिए वे छत्तीसगढ़ की आशाओं के केंद्र में आ गए ना केवल आदिवासी समाज उनसे आशा करता था बल्कि पूरा छत्तीसगढ़ उनकी चमत्कारिक छवि से सम्मोहित था कंगला मांझी विलक्षण नेता थे राष्ट्र गौरव की चिंता करते हुए देश में गोंडवाना राज्य की कल्पना करते थे "उन्होंने बार-बार अपने घोषणा पत्रों में पंडित जवाहरलाल नेहरू का चित्र छाप कर यह लिखा कि देश के लिए समर्पित रहकर मिट्टी का कर्ज चुकाना है।"

कंगला मांझी सरकार का जन्म कांकेर जिले के तेलावट ग्राम में हुआ था यह कंगला मांझी का ननिहाल गांव था सलाम परिवार उनके मामा परिवार हैं यही उनका बचपन बीता है श्रम करते हुए वे जीवन के ऊंचाई ऊपर चढ़ते रहे 1913 से वे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए जंगल में स्वतंत्रता आंदोलन प्रारंभ हो चुका था 1914 में बस्तर की गतिविधियों से चिंतित हो अंग्रेज सरकार आदिवासियों को दबाने जा पहुंची।  बैलाडीला परगना क्षेत्र के 3 पेनक के पुजारियों को अंग्रेजों ने कील ठोकर मार दिया कारण अंग्रेज आदिवासियों की पेनक विश्वास व आस्था पर चोट करना चाहते थे पेनक(देवता) शक्ति पर आदिवासियों के अटल विश्वास पर प्रहार करने के लिए ही पुजारियों की कील ठोक कर हत्या कर दी गई थी। आदिवासी आंदोलन की अलिखित परम्परागत पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित इतिहास के अनुसार लोग आज भी बताते हैं की 3 देवताओं के पुजारियों को जब कील ठोक कर मार दिया गया तब वहां 3 वीर बस्तरिया पेनक प्रकट हुये थे। इन पेनक ने अंग्रेजों से पूछा कि आप बस्तर में क्या चाहते हैं लड़ना है तो हमसे लड़ो माटी पुत्र गोंड आदिवासियों से क्यों लड़ते हो?

अंग्रेज ने कहा मैं जर्मन से हार गया हूं यहां आराम करने आया हूं अंग्रेजों से कुछ दिनों बाद फिर आदिवासियों की लड़ाई हुई इस लड़ाई में अंग्रेज हार गए फिर अंग्रेजों ने कांकेर स्टेट की राजमाता से 3000 जवान देने का आग्रह किया तब कंगला मांझी ने राजमाता को समझाया की अगर आपने जवान अंग्रेजों को दे दिया तो यहां का राज कैसे चलेगा। तब माता ने अंग्रेज से कहा कि अपने लोगों से सलाह कर फिर जवाब दूंगी।
कंगला मांझी ने राजमाता को समझाया कि अंग्रेज हमारी ही ताकत से हमें गुलाम बना कर बैठे हैं इसलिए हम उन्हें सहयोग ना करें आज वे बस्तर में हारे हैं कल देश से हार कर भाग जाएंगे।

कंगला मांझी ने अंग्रेजी सरकार से गोंडवाना राज्य की मांग की। 1915 में रांची में बैठक हुई 1915 से 1918 तक लगातार बैठकी होती रही 1919 में अंग्रेजों ने कांकेर बस्तर और धमतरी क्षेत्र को मिलाकर एक गोंडवाना राज्य बना देने का प्रस्ताव दिया कंगला मांझी इससे सहमत नहीं हुए एक छोटे से क्षेत्र में राज्य की बात उन्हें स्वीकार नहीं थी। उन्होंने कहा कि विराट गोंडवाना राज्य के वंशजों को एक छोटे से भूभाग का लालच दिया जा रहा है हम सहमत नहीं हैं।

डॉ परदेशी राम वर्मा
अगासदिया भारत भूमिका से साभार

संकलन कोसो होड़ी लंकाकोट