बुमकाल स्मृति दिवस की 113वीं वर्षगाँठ सप्ताह आज से शुरू 

लंकाकोट:  बस्तर ही पूरे देश के इतिहास में बुमकाल विद्रोह (1910) अपने आप में मुलबिज आदिवासी व अन्य परम्परागत नार व्यवस्था के निवासियों के द्वारा किया गया आंदोलन अद्वितीय व विशेष है। इस संघठित विद्रोह का नेतृत्व नेतानार गाँव के धुरवा जनजाति का युवा गुंडाधुर धुरवा व डेबरी धुर धुरवा को तत्कालीन बस्तर रियासत के 12 बानी बिरादरी नार व्यवस्था के जन समुदाय के द्वारा सौंपी गई थी। इस विद्रोह का मूल कारण नार व्यवस्था, परगना व्यवस्था, मांझी व्यवस्था की परम्परागत विधि पर प्रहार तथा तत्कालीन राजशाही की निरंकुश व ब्रिटिश हुकूमत के आगे नतमस्तक होने का परिणाम था। 


बुमकाल के प्रमुख कारण:- ब्रिटिश सरकार द्वारा जंगल जमीन से बेदखल, बिना पारिश्रमिक के कार्य करवाया जाना, ज़मीदारी व्यवस्था से रैयत त्रस्त, ब्रिटिश साम्राज्य व ज़मीदारी हिस्से के लोगों द्वारा रैयत की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना व प्रताड़ित करना प्रमुख कारण हैं। ब्रिटिश साम्राज्य व नौकरशाह के द्वारा जनजाति व अन्य परम्परागत मूलनिवासियों की माटी, जंगल पर अतिक्रमण व परम्परागत विधि विरुद्ध ब्रिटिश साम्राज्य की ज्यूडिशियल लॉ को थोपकर जबरन कर वसूली बड़े बड़े सागौन वृक्षों की लूट ने जन की मन में क्रांति की चिंगारी उत्पन्न कर दिया। तत्कालीन समय की आवागमन व परम्परागत सन्देश भेजने की तरीकों की विपन्नता के बाद भी केरल राज्य से बड़े बीहड़ घनघोर बस्तर रियासत में जन की धैर्य सहनशीलता की सीमा लांघने के वजह से जनजातीय समुदाय में स्फूर्ति पैदा कर दिया जिसके कारण क्रांति की हुंकार जगदुगुड़ा से हिरानार, भोपालपटन्नम, अबूझमाड़, अंतागढ़, परलकोट, बोराई, केशलूकाल, अडेंगा,बड़ेडोंगर, आमाबाल, मर्दापाल, करन्दोला, दहीकोंगा, केशरपाल,अलनार, रानसर्गीपाल, एलंगनार लोहण्डीगुड़ा, बनियागांव, कोंटा, राजुर, मुरनार जैसे परम्परागत जूना(पुराना)परगना गांवों सुलग गई थी।

देखते ही देखते बुमकाल विद्रोह की जन चिंगारी रियासत के प्रत्येक कोयतोड़ गांवों की माटी याया की सेवा कर अमलीडारा व लालमिरी के संकेतक रूप में बमुश्किल 15 दिनों में पहुँचा दिया गया। पूरे गांवों में तानाशाही कानून व राजशाही निरंकुशता के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश व्याप्त हो गया। यह विद्रोह भारत के महान योद्धा क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा की विद्रोह की याद दिलाता है। मजे की बात इतनी व्यापक स्वस्फूर्त जन चेतना में राजपरिवार व राजनायिक तंत्र के किसी भी व्यक्ति की भूमिका नहीं रही इसकी वजह आम जनता व बुद्धिजीवी वर्ग के लिए आज तक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है? इसके सन्दर्भ मुरिया विद्रोह की कारण से ले सकते हैं।

बुमकाल विद्रोह का आगाज़ 4 फरवरी 1910 को दक्षिण बस्तर के हिरानार से हुई इसलिए इसकी स्मृति में बस्तर का जनजातीय व अन्य परम्परागत मूल निवासी (सर्व मूल बस्तरिया समाज)समुदाय बुमकाल स्मृति दिवस सप्ताह का आरंभ हिरानार में परम्परागत माटी सेवा कर इस क्रांति के शहीद पुरखों की पेन सेवा अर्जी करते हैं। उसके पश्चात 10 फ़रवरी को जगदुगुड़ा वर्तमान जगदलपुर में विशाल रैली करते हुए ढेबरी धुर धुरवा की शहादत स्थान गोल बाज़ार की ईमली पेड़ जिसमें फांसी दी गई थी पर सेवा अर्जी कर गुंडाधुर धुरवा की विशाल आदमकद प्रतिमा पर जन गर्वोन्नत भाव से सेवा अर्जी करते हुए सभा आयोजित किया जाता है। 14 फ़रवरी को अलनार गाँव जहां पर बुमकाल के योद्धाओं की ब्रिटिश सेना के साथ परम्परागत हथियार व आधुनिक हथियारों का सामना हुआ। इस अलनार की माटी में योद्धाओं की लहू की धार बही आज भी उस लड़ई मैदान में पहुँचने से परम्परागत व आधुनिक हथियारों की मुकाबले की जीवन्त तस्वीरें मेरे दिलोदिमाग में तैरती हैं। अलनार लड़ई भाटा की माटी की धुरला(महीन मिट्टी) को शहीदों के वंशज आज भी माथे पर लगा कर ऊर्जावान होकर विनम्रता से पुरखों की शहादत को जोहार करते हैं नमन करते हैं। संभागीय धुरवा समाज बस्तर संभाग के द्वारा व समुदाय के ही शोधि तिरुमाल गंगाधुर नाग धुरवा के अनुसार इस महान बुमकाल विद्रोह के क्रांतिकारियों की सूची तैयार किया जा रहा जिसमें अब तक 51 योद्धाओं का नाम शोध उपरांत बनाया गया है। 15 फ़रवरी को शहीद हरचंद नाईक के गाँव रान सर्गीपाल में माटी की सेवा अर्जी किया जाता है 17 फ़रवरी को  शहीद मुंदी कलार के गाँव नेगानार 19 फ़रवरी को गुंडाधुर धुरवा के सबसे विश्वसनीय मित्र ढेबरी धुर धुरवा की जन्मभूमि एलंगनर में 21 फ़रवरी को शहीद मड़कामी मासा वल्द भीमा माड़िया की जन्मभूमि केलाउर में परम्परागत विधि विधान से गांव गोसिन याया(जिम्मीदरिन/माटी याया) की सेवा अर्जी कर शहीदों को पेन जोहार किया जाता है। बुमकाल सप्ताह का समापन 22 फ़रवरी को इस विद्रोह के जननायक हमारे पुरखा गुंडाधुर धुरवा की माटी नेतानार में उनके वंशजो की उपस्थिति में गाँव गोसिन याया व हमारे पेन गुंडाधुर धुरवा की विशालकाय प्रतिमा में परम्परागत सेवा अर्जी कर समुदाय द्वारा सभा आयोजित कर अमर गुंडाधुर धुरवा तथा अनेक बेनाम शहीदों को जोहार बुमकाल जोहार डारा मिरी जोहार गुंडाधुर अमर रहे देब्रीधुर अमर रहे बुमकाल लड़ई अमर रहे की गगनभेदी परम्परागत स्तुति करते हुए उनके संघर्षों पर चलकर समुदाय व बस्तर की माटी की रक्षा की कीरया करते हुए सम्पन्न होती है।

कोसोहाड़ी लंकाकोट, कोया मूरी दीप